भूखे
बालक की उंगली
चंद्रमा पे टिकी थीले ममता का आँचल
माँ की साँसे रुकी थी
कान्हा की भी उंगली
चाँद पे रुकी थी
बाल हठ के आगे
यशोदा भी झुकी थी
आज का ये कृष्ण
भूख से पीड़ित है
तन नंगा कुपोषित
धूल से धूसरित है
आरजू में उठी उंगली
मैय्या बहुत छोटी है
वो चन्द्रमा नहीं
वो तो मेरी रोटी है
मैय्या ठिठोली न कर
भूख बड़ी आई है
परात में रोटी नहीं
रोटी की परछाई है
माँ की ममता यहाँ
ऐसे गस खाई है
आंसुओं की धार
कपोलों में छाई है
बादल में छिपे चाँद
की आँखे भी डबडबाई है
चन्द्रमा की आंखे
उस माँ पे टिकी थी
ममता के आगे
जो सरे आम बिकी थी ...
ममता के आगे
जो सरे आम बिकी थी ...
ओ.बी.ओ.चित्र काव्य में प्रकाशित
बहुत बेहतरीन भावों को अपनी रचना में उकेरा है ,,,बधाई उमाशंकर जी,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST -मेरे सपनो का भारत
समय की कमी से प्रिय धीरेन्द्र जी
हटाएंमै आपका धन्यवाद ज्ञापित नाहीं कर पाया
आपका हार्दिक आभार
रोटी रोदन रात रत, रिक्त *रोटका *रोट |
जवाब देंहटाएं**राट हुवे सब राड़ सब, खूब छापते नोट |
खूब छापते नोट, बनी है ***रोटिहा ममता|
राज काज का खोट, कहीं न मिलती समता |
छीने पहरेदार, नजर रोटी पर खोटी |
बेंचे चीज अमोल, कमाती दो ठो रोटी ||
*बाजार * गेंहूँ का आटा ** श्रेष्ठ
***मात्र रोटी पर काम करने वाली
आदरणीय रविकर जी
हटाएंआपने अपनी इस कुंडली से हमें
वसीभूत कर लिया है
आपके तराने जो समझ गया वो माला मॉल होगया
साहित्य साधना है आपकी कुण्डलियाँ
हार्दिक आभार
समय अभाव में मुझे विलम्ब हुवा है
मै क्षमा चाहता हूँ
उमा शंकर जी आपको यहाँ देखकर बहुत ख़ुशी हुई रचना को दुबारा पढने में भी इतना ही आनंद आया आपके ब्लॉग को फोलो करलिया है मेरा ब्लॉग http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in par aapka swaagat hai.
जवाब देंहटाएंआदरणीया राजेश कुमारी जी
हटाएंआपका साहित्य के प्रति एवं हिंदी के प्रति
अगाध प्रेम देख कर मै आपका आभारी हूँ
आपका मेरे इस ब्लॉग में आना मुझे
सुखकर लगा सादर धन्यवाद