भारत बंद
खुल जा सिम सिम बंद हो जा सिम
सिम –दुकान
हो या कार्यालय
बंद करना,कराना,या खुलवाना,यह तमाशा ‘भारत
बंद’ के मौके पर
देखने या दिखाने का
मधुर दृश्य दृष्टिगोचर होता है|
भारत बंद हम भारतीयों का राष्ट्रिय त्यौहार है. पीने
वालों को पीने
का बहाना चाहिए, और
हमें तो भारत बंद कराने के
लिए एक सरकार की टेढ़ी चाल का इंतजार रहता है| यह त्यौहार
प्रति वर्ष किसी भी
महीने में मनाया जा सकता है|सरकार
को भारत
बंद को राष्ट्रिय त्यौहार घोषित कर देना चाहिए, क्योंकि प्रायः
राजनैतिक
पार्टियों में ही इस प्रकार की क्षमता विकसित होती है
जो भारत बंद जैसा
क्रांतिकारी कार्य संपन्न करा सके| भारत
बंद
मनाने कि घोषणा के साथ प्रत्येक मध्यम वर्गीय अपने जरूरतों का
सामान पहले खरीद
कर रख लेता है|गरीब
आदमी बेचारा बेचारा ही
रहकर मुँह ताकता रहता है| इस दिन नगर की सारी दुकाने बंद
रहती
है.किराना से लेकर खोमचे वाले तक इस त्यौहार में शरीक
होते हैं.सरकारी दफ्तर,प्राइवेट संस्थानों में कार्य
करने वाले अपने
ऑफिस,को
बंद कराने के लिए बंद के आयोजकों को निमंत्रण भेजते
है की, आइये हमें भी छुट्टी दिलवाइए|भारत बंद पर कुछ संस्थान
जैसे
बैंक बीमा आदि के कर्मचारियों को आकस्मिक अवकाश का
सुख प्राप्त होता है| अधिकांशतः यह देखने में आया है
की इस
त्यौहार को मनाने का दिन विपक्ष पार्टी के द्वारा तय किया जाता
है.परन्तु इसका पूरा आनंद पक्ष एवं विपक्ष दोनों मिलकर उठाते
है|सत्ता पक्ष के लोग गली गली
मोहल्ले मोहल्ले में घूम घूम कर
लाउडस्पीकर एवं डंडे लेकर बंद हुई दुकानों को
खुलवाते हैं|विपक्ष
के
लोग पत्थर फेंक कर उन दुकानों को फिर से बंद करवाते हैं| वीरता
दिखाने वाले संस्थान के
शीसे कुछ वीर टाईप के शरारती तत्वों के
द्वारा तोड़ दिए जाते हैं,परिणाम स्वरुप कहीं सुख कहीं
दुःख का
वातावरण बन जाता है| कभी
कभी दुकानों के बंद करने और
खुलवाने में हंगामा हो जाता है, और दुकानें लुट ली जाती है.जिसका
पूरा फायदा पक्ष विपक्ष के साथ आम जनता को भी मिलाता है|
रस्ते का माल सस्ते में और सस्ते
का माल रस्ते में बिकने लगता
है|इस
त्यौहार में बहुत से रमणीक दृश्य भी देखने को मिलते हैं.बंद
के दौरान हाथ में डंडा
लेकर दौड़ती पुलिस,उनके
आगे आगे भागते
नौजवान, कुत्ते
बिल्ली का खेल खेलते मनभावन लगते हैं|नवजवानों
की भीड़ गली कुचे में समां जाती है, आस
पास खड़े बड़े बुजुर्ग को
पुलिस के डंडों का कोप भाजन बनना पड़ जाता है.बेचारे बड़े
बुजुर्ग
अपनी बुजुर्गियत का रोना डंडे खाने के साथ रोते हैं, पर हाय रे
भावना प्रूफ पुलिस जिस
पर किसी प्रकार की भावनाओं का कोई
प्रभाव नहीं होता. दुकानों के लुटने और लुटवाने
में प्रायः पुलिस का
कोई योगदान नहीं होता, ये
हम कहते है| आप
क्या सोचते हैं| ये
आप जाने? हमें
तो पुलिस के डंडे से सदा ही डर लगता है| लुटती
हुई दुकान का मालिक की
गुहार सुन पुलिस वाले दौड कर आ जाते
हैं|ऐसा हिंदी फिल्मों में कभी नहीं
होता| लुटेरे
तो भाग जाते हैं, पर
दुकान का व्यारा न्यारा हो जाता है| इस
त्यौहार के लाभ शहर के
हर गली मोहल्ले में दिखता है| लूटे हुए मॉल सस्ते दामों में बिकते
हैं| जिसका फायदा समाज के सभी वर्ग के
लोग उठाते हैं|अतः
भारत बंद हम भारतियों का महत्वपूर्ण त्यौहार है सही अर्थों में यह
राजनीतिकों का
त्यौहार है, परन्तु
आम जनता इसमे शरीक होकर
कौमी एकता का परिचय देती है| इस त्यौहार के दूसरे दिन सारे
अखबारों में छपा रहता है कि अमुक अमुक जगह भारत बंद
हर्षोल्लास से मनाया गया|विपक्ष तो इस त्यौहार को
स्थायित्व
प्रदान करने के लिए भी बंद का आयोजन कर सकते हैं|उनका
कहना है की सत्ता में
आते ही हम भारत बंद पर पुलिस के डंडे
खाने वालों को बंद संग्राम सेनानी घोषित कर
उन्हें पेंसन देने कि
योजना पर काम करेंगे|
उमाशंकर मिश्रा
बहुत सार्थक आलेख...कब होगा बंद यह बंद का तमाशा...
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