गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो


जल्वे  हम पे  भी थोड़े लुटाया करो

खिड़कियों पर  न परदे लगाया करो|.


है तेरे  प्यार    की ये  कैसी तड़प

यूँ नजर फेर   कर ना सताया करो|

चाँद ने चाँदनी  डाल दी  चाँद पर

चाँद घूँघट  में यूँ न  छिपाया करो|

मनचली है  हवा  ओढ़ लो ओढ़नी

इन हवाओं  से दामन  बचाया करो|

लब  थिरकते हुए अनकही  कह गये

शब्द अनहद का यूँ न बजाया  करो| . 

हम चलो झूम लें आज लग कर गले

ख्वाब में ही न जन्नत दिखाया करो|      

सब पे तोहमत लगाना गलत है सनम

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो|  .

रंगे  खूँ  से   हीना सजाया करो
यूँ  न  बर्कएतजल्ली*  गिराया  करो

ये जुबाँ  कट गई  खुद के दाँतों तले
ऊँगलियाँ यूँ न  सब पर उठाया करो

चश्म* की  झील में बस  डुबादो मुझे
डूब  जाने भी दो  मत बचाया  करो

फूल को  चूम कर  भौंरा पागल हुआ
घोल  मदहोशी,  रस न  पिलाया करो

जिस्म की गंध  से मन  हुआ बावरा
सिर को सहला के यूँ न सुलाया करो

प्रेम पावन  हो जैसे कि  राधा किशन
बाँसुरी बन के  होठों  पे  आया करो

आज मीरा को माधव मिले ना मिले
प्रेम  माखन  हमेशा   लुटाया करो

बर्कएतजल्ली*=बिजली गिरना
चश्म*=आँख
ओ.बी.ओ.में सम्मलित गजल 

उमाशंकर मिश्रा