सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

गजल

                         देश के बैरियों का करूँगा कतल |

हिंदू मुस्लिम का है  कहा कौन है ?
खून किसका बहा है बता कौन है ??
          
    उनकी महफ़िल में कैसी तकरीर थी
कट गई गरदने लापता कौन है?
          
          दंगे भड़के नहीं यूँ लगाये गए |
तल्ख़ किसने कहे सरफिरा कौन है?
          
    देश से दुश्मनी किसके कहने पे की ?
जहर किससे पिया जानता कौन है ??
          
    हर तरफ थू थू की आवाज थी |
फूल सा मुस्कुराता हुआ कौन है ??
          
         तुम नादान थे क्या जानों खता |
जख्म माँ ने सहे मानता कौन है ||
          
    अपनी माटी से उपजी कैसी फसल ?
बो रहा कोई है काटता कौन है??

वतन को सम्हाले या जेबे भरें
जेब कितनी भरी झांकता कौन है ??
          
    देश के बैरियों का करूँगा कतल |
है जुनूने वतन जानता कौन है ||

उमाशंकर मिश्रा

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

गजल



याद आवारा सी जेहन में सफर करती है
आह एहसास को फुरकत की नजर करती है  |1|

अश्क़ आसानी से अक्सर बहा नहीं करते
चोट गहरी है जुंबा दिल पे जहर करती है |2|

ज़िंदगी है कहाँ महफूज़ लड़कियों की यहाँ
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है |3|

निराश जिंदगी मुश्किल में सदा रहती है
आस से राह भी  मुश्किल पे जफ़र करती है |4|

मौत से डर गया बुजदिल वो कहाता यारों
जिंदगी मौत के उस पार सफर करती है |5

चाल बहके तो बदनाम चलन है साकी
जाम छलके बिना मदहोश नजर करती है | 6

दूर सौ कोस से उसने जो हमें याद किया
खुजलियाँ पूरे तन बदन पे कहर करती है |7

उमाशंकर मिश्र 
छ.ग.दुर्ग 

रविवार, 2 दिसंबर 2012

कव्वाली


एक असफल प्रयास गजल लिखने का गजल नहीं बन सकी तो कव्वाली हो गई 
मौसम बदल जाये वो मंजर दे
तपते हुवे  जून को  नवंबर दे

उनकी बकरी ने लूट ली महफ़िल
शेर गुस्से में है जरा खंजर दे

नपाक जमीं पर कसाब बोते हैं
कोख सूनी या फिर बंजर कर दे

मंजर दिखा रहे हैं बारूदों का
लग जाये गले ऐसा मंतर दे

भ्रष्टाचार  है  या ये  है   दीमक
इनको चट कर जाऊं वो जहर दे

आदमी है यहाँ जमूरे की तरह
हाथ जनाब के  कोई बन्दर दे

बेख़ौफ़  संसद में   वो बैठे  हैं
बंद आँख की तौल उन्हें अंदर दे

लबालब तेल फिर भी बुझा हुवा
इन चिरागों  को रोशनी भर दे

लड़ रहे है लगा के मुँह से मुँह
मसुर की दाल मुँह में मुगदर दे  

हर मोड़ लैला मजनूं दिखते हैं
उदास भीड़ के हाथ कोई पत्थर दे

देख दिल्ली का ना सिर फिर जाये
अम्मा असरदार को असर कर दे

ये जुबाँ बे जुबाँन  हुवे जाती है
इन तल्ख़ जुबाँ को कोई लंगर दे

दौलते पंख लिए  वो उड़ते हैं
हवाओं इन गुरुरों के पर क़तर दे

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

दोहे


ठेस
जिन की ख़ातिर मैं मरा, मिले उन्हीं से शूल |
चन्दन अपने पास रख, मुझ को दिये बबूल ||

गर्व सदा जिन पर किया ,धन माया को  जोड़|
वे  ही  कांधे  पर तुझे  , आये  मरघट  छोड़||

उम्मीद
पिया मिलन की आश में, मन ज्वाला बरसाय|
पल पल बीता जा रहा, उमर न ढहती जाय||

सौंदर्य
लरजत फरकत होंठ हैं ,तिरछी नजर कटार|
ओंठ दाँत से चाबती, गाल हुवे अंगार||

आश्चर्य
संसद पारित हो गई,ऐसी ही तरकीब|
दौलत अपनी बाँट के, नेता हुए गरीब||

हास्य व्यंग्य
इम्तहान की कापियाँ ,ली गइयन ने खाय|
गुरुजी गोबर देखकर , नम्बर रहा बनाय ||

विरोधाभास 
गरम चाय को फूंक लो, ठंडी वो हो जाय|
धुँवा परत अंगार को, फूंकत आग लगाय||  

सीख
दूध फटा  गम तो हुआ ,  कैसे पीयें चाय|
रसगुल्ला बनवायके ,घर घर दियो बँटाय ||

तना तना इठलात है,पल में दिया उखाड़|
जो डाली झुक जात हैखड़ी रहत है ठाँड़||

उमाशंकर मिश्रा 

सोमवार, 12 नवंबर 2012


               श्री प्रतुल वशिष्ठ उदगार :-तुलसी केशव ....


भारतीय संस्कृति इतनी समृद्ध है कि आप यदि हर त्योहार के नाम का एक-एक मनका भी माला में पिरो लें तो भी कम-से-कम दो-तीन मालाएँ जाप के लिए हमारे आपके हाथ में होंगीं।

रविकर जी, मैंने आपकी और अरुण जी जैसी आशु कविताई की वर्तमान में कभी कल्पना भी नहीं की। आप और अरुण जी वर्तमान साहित्य जगत के सिरमौर हैं। कभी मन में एक कसक थी कि वर्तमान में सूर-तुलसी-केशव जैसे कवि क्यों नहीं होते। मन में ये सुकून है कि अब उसकी भरपायी हो गयी है। अरुण निगम जी और आप जिस निष्ठा से साहित्य की सेवा में लगे हैं वह अद्भुत है, सराहनीय है, वन्दनीय है।


आप जैसे आदरणीय कविश्रेष्ठ बंधुओं से आशीर्वाद मिले तो जबरन कोशिश से बने कवियों पर माँ शारदा की कृपा होवे।


दीपावली की अनंत शुभकामनाओं के साथ चरण-स्पर्श।

आदरणीय प्रतुल जी आपके द्वारा व्यक्त उदगार को पढ़ मै अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ|
पाठशाला में जब भक्तिकालीन कवियों के छंद पढता था सोचता था इस काल में शायद हि ऐसे
कवि जन्म लेंगे| अरुण निगम रविकर जी अम्बरीश श्रीवास्तव जी सौरभ पांडे जी इनके अतिरिक्त  भी यहाँ अनेक विद्वान जन हैं जिनको पढ़ ऐसा लगता है की मै उस युग में हूँ|

सहमत हैं हम आपसे, आदरणीय वशिष्ठ
रवि अरुण हैं बांचते,  कविताएँ उतकृष्ट

अरुण वृक्ष साहित्य के,फल देखत हम दंग
दोहे ऐसे फूलते,  सुमन खिले बहु रंग

कहीं सवैय्या कुंडली,मन को लेती जीत
कहीं गीत रस धारिणी,लगे मीठ भर प्रीत

रविकर जादूगर भये, शब्दन मायाजाल
कुण्डलियाँ जब छोड़ते, भाव करे बेहाल

सही प्रतुल जी ने कहा, तुलसी केशव आज
कवि ह्रदय में बस रहे, हमको इनपर नाज 
उमाशंकर मिश्रा    
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गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो


जल्वे  हम पे  भी थोड़े लुटाया करो

खिड़कियों पर  न परदे लगाया करो|.


है तेरे  प्यार    की ये  कैसी तड़प

यूँ नजर फेर   कर ना सताया करो|

चाँद ने चाँदनी  डाल दी  चाँद पर

चाँद घूँघट  में यूँ न  छिपाया करो|

मनचली है  हवा  ओढ़ लो ओढ़नी

इन हवाओं  से दामन  बचाया करो|

लब  थिरकते हुए अनकही  कह गये

शब्द अनहद का यूँ न बजाया  करो| . 

हम चलो झूम लें आज लग कर गले

ख्वाब में ही न जन्नत दिखाया करो|      

सब पे तोहमत लगाना गलत है सनम

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो|  .

रंगे  खूँ  से   हीना सजाया करो
यूँ  न  बर्कएतजल्ली*  गिराया  करो

ये जुबाँ  कट गई  खुद के दाँतों तले
ऊँगलियाँ यूँ न  सब पर उठाया करो

चश्म* की  झील में बस  डुबादो मुझे
डूब  जाने भी दो  मत बचाया  करो

फूल को  चूम कर  भौंरा पागल हुआ
घोल  मदहोशी,  रस न  पिलाया करो

जिस्म की गंध  से मन  हुआ बावरा
सिर को सहला के यूँ न सुलाया करो

प्रेम पावन  हो जैसे कि  राधा किशन
बाँसुरी बन के  होठों  पे  आया करो

आज मीरा को माधव मिले ना मिले
प्रेम  माखन  हमेशा   लुटाया करो

बर्कएतजल्ली*=बिजली गिरना
चश्म*=आँख
ओ.बी.ओ.में सम्मलित गजल 

उमाशंकर मिश्रा 

सोमवार, 24 सितंबर 2012

हमारा संकल्प



      
      हमारा संकल्प 
      करें प्रयास हम भारत वासी, सत्य सफलता पाना है|
मेहनत की पूंजी से सिंचितप्यारा  देश बसाना है||
सत्य मार्ग गांधी वादी हम, दुनिया को बतलाना है|
मातृभूमि को रहें समर्पित, माँ को शीस चढ़ाना है||
शालीनता का वृक्ष लगा कर, मृदु छैय्या फैलाना है|
हर चेहरा मुस्कान लिए हो, ऐसा स्वर्ग बसाना है||
हर हाँथो को काम मिले अब, ऐसी राह बनाना है|
नहीं कोई भूखा प्यासा हो, इतना अन्न उगाना है||
शिक्षा को अधिकार बनाकर, ज्ञान दीप जलाना है|
विकसित हो भारत अपना, नंबर वन पर लाना है||
भेद भाव अलगाव ये वर्णी, हमको यहाँ मिटाना है|
नित प्रतिदिन नई खोज हो, आलस दूर भगाना है||
सूरज की किरणें संचित कर, रातों में बिखराना है|
हर शहर और गांव गांव तक, प्रगति को पहुँचना है||
कारखाना हो या खलिहान, हर फसलों को उपजाना है|
हर घर हर झोपड़ पट्टी से, अन्धकार मिटवाना है||
ईमान प्रेम श्रद्धा के फूलों से, भारत को महकाना है|
श्रम शक्ति की पूजा से अब,  कीर्तिमान बनाना है||
ज्ञान दीप प्रज्वलित करके,अज्ञान को दूर भगाना है|
सूर्य चन्द्रमा भी फीके हों, ऐसी चमक दिखाना है||
मेरे सपनों का सुन्दर भारत ऐसा ख्वाब सजाना है|
संकल्प हमारा पूरा होगा, मनन हमें कर जाना है||   
उमाशंकर मिश्रा छ.ग.