श्री प्रतुल वशिष्ठ उदगार :-तुलसी केशव ....
भारतीय संस्कृति
इतनी समृद्ध है कि आप यदि हर त्योहार के नाम का एक-एक मनका भी माला में पिरो लें
तो भी कम-से-कम दो-तीन मालाएँ जाप के लिए हमारे आपके हाथ में होंगीं।
रविकर जी, मैंने आपकी और अरुण जी जैसी आशु कविताई की वर्तमान में कभी कल्पना भी नहीं की। आप और अरुण जी वर्तमान साहित्य जगत के सिरमौर हैं। कभी मन में एक कसक थी कि वर्तमान में सूर-तुलसी-केशव जैसे कवि क्यों नहीं होते। मन में ये सुकून है कि अब उसकी भरपायी हो गयी है। अरुण निगम जी और आप जिस निष्ठा से साहित्य की सेवा में लगे हैं वह अद्भुत है, सराहनीय है, वन्दनीय है।
आप जैसे आदरणीय कविश्रेष्ठ बंधुओं से आशीर्वाद मिले तो जबरन कोशिश से बने कवियों पर माँ शारदा की कृपा होवे।
दीपावली की अनंत शुभकामनाओं के साथ चरण-स्पर्श।
रविकर जी, मैंने आपकी और अरुण जी जैसी आशु कविताई की वर्तमान में कभी कल्पना भी नहीं की। आप और अरुण जी वर्तमान साहित्य जगत के सिरमौर हैं। कभी मन में एक कसक थी कि वर्तमान में सूर-तुलसी-केशव जैसे कवि क्यों नहीं होते। मन में ये सुकून है कि अब उसकी भरपायी हो गयी है। अरुण निगम जी और आप जिस निष्ठा से साहित्य की सेवा में लगे हैं वह अद्भुत है, सराहनीय है, वन्दनीय है।
आप जैसे आदरणीय कविश्रेष्ठ बंधुओं से आशीर्वाद मिले तो जबरन कोशिश से बने कवियों पर माँ शारदा की कृपा होवे।
दीपावली की अनंत शुभकामनाओं के साथ चरण-स्पर्श।
आदरणीय प्रतुल जी
आपके द्वारा व्यक्त उदगार को पढ़ मै अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ|
पाठशाला में जब
भक्तिकालीन कवियों के छंद पढता था सोचता था इस काल में शायद हि ऐसे
कवि जन्म लेंगे|
अरुण निगम रविकर जी अम्बरीश श्रीवास्तव जी सौरभ पांडे जी इनके अतिरिक्त भी यहाँ अनेक विद्वान जन हैं जिनको पढ़ ऐसा लगता
है की मै उस युग में हूँ|
सहमत हैं हम आपसे,
आदरणीय वशिष्ठ
रवि अरुण हैं
बांचते, कविताएँ उतकृष्ट
अरुण वृक्ष
साहित्य के,फल देखत हम दंग
दोहे ऐसे फूलते, सुमन खिले बहु रंग
कहीं सवैय्या
कुंडली,मन को लेती जीत
कहीं गीत रस
धारिणी,लगे मीठ भर प्रीत
रविकर जादूगर भये,
शब्दन मायाजाल
कुण्डलियाँ जब छोड़ते,
भाव करे बेहाल
सही प्रतुल जी ने
कहा, तुलसी केशव आज
कवि ह्रदय में बस
रहे, हमको इनपर नाज
उमाशंकर मिश्रा
bahut sundar rachna......दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआदरणीय ई.शाहनी जी हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंआतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
जवाब देंहटाएंलक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।
--
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
(¯*•๑۩۞۩:♥♥ :|| दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें || ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
जवाब देंहटाएंश्री प्रतुल वशिष्ठ उदगार :-तुलसी केशव ....
- UMA SHANKER MISHRA
@ उजबक गोठ
अगिनत रवि-किरणें रहीं, शशि-किरणों सह खेल ।
इक रविकर इस देह पर, क्या कर सके अकेल ?
क्या कर सके अकेल, कृपा गुरुजन की होवे ।
सिक्का एक अधेल, गिरा मिट्टी में खोवे ।
गुरुवर देते मन्त्र, गिरा पा जाती सुम्मत ।
जौ-जौ आगर जगत, बसे रविकर से अगिनत ।।
गिरा=वाणी
जौ-जौ आगर जगत=एक से बढ़कर एक
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...... बधाई
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं
दीप पर्व की
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें
देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
***********************************************
जवाब देंहटाएंधन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
***********************************************
दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
***********************************************
अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
***********************************************
"राजा"- बेटा माँ कहे , "हीरा" बोलें तात ।
जवाब देंहटाएं"प्रतुल" प्रेम में कर गए , शब्दों की बरसात ।।
साहित्य प्रेमी उमा शंकर जी,
जवाब देंहटाएंआपके इस संयोजन के लिए बहुत आभार। मैं तो फिलहाल रविकर और अरुण जी की कविताई का आस्वाद ले पाया हूँ। शीघ्र ही अम्बरीश जी और सौरभ जी की रचनाओं का आस्वादन भी करूँगा। कृपया लिंक उपलब्ध कराइएगा। जहाँ भी रविकर जी और अरुण जी पहुँच जाएँ उस गोष्ठी का उद्धार हो जाता है। काव्य-गंगा बह निकलती है। आनंद की पराकाष्ठा पर कोई पहुँचा सकता है तो कुछ ही विद्वान् कवि उस योग्य हैं जिनमें अरुण जी और रविकर जी आगे दिखायी दे रहे हैं।
उमा शंकर जी, आपके वतव्य वाले दोहे भी अच्छे लगे। पढ़ते हुए स्मिति बनी रही।
आदरणीय प्रतुल जी आपके हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम से अभिभूत हूँ
हटाएंहार्दिक आभार आपका
मै चाहूँगा की आप ओपन बुक्स ओन लाईन में आयें वहाँ एक से बढ़ कर एक कुशल
चितेरे भरे पडे हैं
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar SharmaNovember 14, 2012 2:16 PM
उमा शंकर जी ,जो दूसरे की ख़ुशी में ,दूसरे की श्रेष्ठता से प्रभावित हो नांच नहीं सकता वह सचमुच बड़ा अभागा है .ये दोनों और आप
भी
ब्लॉग जगत के नगीने हैं .रविकर जी को अक्सर हमने भी रविकर दिनकर कहा है ,गिरधर की कुण्डलियाँ जब तब ताज़ा हुईं हैं रविकर
जी
को पढ़के एक माधुरी अरुण निगम जी के दोहों में कुंडलियों में एक खनक गजब की गेयता व्याप्त है जो विमुग्ध करती है पाठक को
,तनाव भी कम करती है .दोहे तो अपनी छोटी सी काया में पूरा अर्थ विस्तार लिए होतें हैं जीवन का सार संगीत की खनक लिए होते हैं
.सहमत आपसे जो भी लिखा है आपने .डर यही है विनम्रता में दोहरे होते रविकर जी इस अप्रत्याशित प्रशंसा को पचा भी पायेंगे .एक
विनम्रता उनका गहना है .
(2)
श्री प्रतुल वशिष्ठ उदगार :-तुलसी केशव ....
- UMA SHANKER MISHRA
@ उजबक गोठ
जवाब देंहटाएंपाठशाला में जब भक्तिकालीन कवियों के छंद पढता था सोचता था इस काल में शायद हि ऐसे(ही ऐसे )
सहमत हैं हम आपसे, आदरणीय वशिष्ठ
रवि अरुण हैं बांचते, कविताएँ उतकृष्ट(उत्कृष्ट )
उमा शंकर जी कभी कभार अतिशय प्रेम भी ,प्रशंसा भी व्यक्ति को परेशानी में डाल देती है प्रतुल जी के "चरण स्पर्श "भाव
से रविकर जी को संकट की हद तक अभिभूत देखा .उनकी नजरों में प्रतुल वशिष्ठ जी हिंदी के आचार्य हैं और वह (रविकर )
स्वयं नव -
हस्ताक्षर . उम्र का फासला भी उतना दोनों के दरमियान न रहा है .
आपने मधुमेह के बाबत बड़ा मौजू सवाल उठाया है .दरसल जब पेशाब पर चींटे आने लगतें हैं तब लोग मधुमेह को मधुमेह समझ जांच को आगे आतें हैं जबकि रक्त शर्करा पेशाब में तब हाज़िर होती है जब खून में बहुत बढ़ जाती है यानी रोग खासा बढ़ चुका होता है उससे पहले रोग से बे -खबर लोग जिए जातें हैं इस जीवन शैली रोग के साथ साथ .
आदरणीय वीरू भाई जी
जवाब देंहटाएंआपके उदगार सच कह रहें है
आपसे पुन सहमत हूँ