एक असफल प्रयास गजल लिखने का गजल नहीं बन सकी तो कव्वाली हो गई
मौसम बदल जाये वो मंजर दे
तपते हुवे जून को नवंबर दे
उनकी बकरी ने लूट ली
महफ़िल
शेर गुस्से में है
जरा खंजर दे
नपाक जमीं पर कसाब
बोते हैं
कोख सूनी या फिर
बंजर कर दे
मंजर दिखा रहे हैं
बारूदों का
लग जाये गले ऐसा
मंतर दे
भ्रष्टाचार है या ये है दीमक
इनको चट कर जाऊं वो जहर दे
आदमी है यहाँ जमूरे
की तरह
हाथ जनाब के कोई
बन्दर दे
बेख़ौफ़ संसद में वो
बैठे हैं
बंद आँख की तौल
उन्हें अंदर दे
लबालब तेल फिर भी
बुझा हुवा
इन चिरागों को रोशनी भर दे
लड़ रहे है लगा के
मुँह से मुँह
मसुर की दाल मुँह
में मुगदर दे
हर मोड़ लैला मजनूं
दिखते हैं
उदास भीड़ के हाथ कोई
पत्थर दे
देख दिल्ली का ना
सिर फिर जाये
अम्मा असरदार को असर
कर दे
ये जुबाँ बे जुबाँन हुवे जाती है
इन तल्ख़ जुबाँ
को कोई लंगर दे
दौलते पंख लिए वो
उड़ते हैं
हवाओं इन गुरुरों के
पर क़तर दे
हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंशीर्षक मस्त -
लाल लगा जो लाल को, हुआ लाल-कव्वाल |
लालबुझक्कड़ लालमन, खाए मिर्ची लाल |
खाए मिर्ची लाल, गजलखाते में डाले |
ब्लॉग रहे आबाद, एक से एक मसाले |
लालायित नहिं उमा, वहां सम्बन्ध सगा जो |
जाता है हर समय, खीज नहिं लाल लगा जो-
आदरणीय आपके उदगार सत्य वचन
हटाएंहम तो उनमें से है ....इंसान का इंसान से हो भाई चारा
यही पैगाम हमारा ..यही पैगाम हमारा
हार्दिक आभार
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविकर जी आपके इस प्रेम के लिए धन्यवाद
हटाएंचलिए,कुछ तो बना गजल नही कव्वाली ही सही,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : तड़प,,,
janab ye gajal hi hai .....bahut mja aaya .
जवाब देंहटाएंमंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
जवाब देंहटाएंआस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।
बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।
रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।
तुम्हें कव्वाली का प्रयास सार्थक है।
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणी unknown बता रहा है।
जवाब देंहटाएं