बुधवार, 4 जुलाई 2012

जागो जागो ....रे




जागो जागो भारतवासी  ये कैसी मंहगाई है

चाँवल दाल में आग लगी है दीन हीन को खाई है

पी.एम.यहाँ विश्व बैंक के पुराने खिदमदगाई है
बढ़ते बढ़ते बढ़ती जाए जैसे मौत की खाई है


महंगाई की थाह नहीं है जाने कितना जायेगी
पूछे कौन समुद्र से तुझमें कितनी गहराई है


सब्जी भाजी से ना पूछो शर्म लिए कुम्हलाई है
पेट्रोल हुआ कंपनियों का शाह अरब ये भाई है


बिजली बिल भी रोता है क्यों शासन करे कमाई है
दैनिक जीवन की हर वस्तु ख्वाबों की परछाई है.


आई एक दहाड़  मंच से शामत उनकी आई है
समझो समझो खद्दर धारी खुलने लगी कलाई है

ओ.बी.ओ.तरही मुशायरा में प्रस्तुत गज़ल 

उमाशंकर मिश्रा 

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