शनिवार, 19 मई 2012

बस्तर कि व्यथा


बस्तर की व्यथा
कोई इतिहास के झरोखों से झांके
अंधेरों में भी दिखेंगी
भयातुर मेरी वेदना भरी आँखे
आदिम युग की  समेटे वह तस्वीर
दिखेगी रोती  बिलखती
भूखी अंजान रधिया की तक़दीर
मै बस्तरिया अबुझमाड़ की गाथा
वस्त्र विहीन आदिम संस्कृति
ढो रहा अभाव में डूबी नग्न पावनता
आते जाते सैलानियों के कैमरों में
समा जाता हूँ बन के कला
मेरे वक्ष से लटकती माँ
आँखों में सूखे उन आंसुओं कि छाप
मेरा सब कुछ अजगर बन निगल रहा
नक्सली आतंकी सांप
विस्फोंटो में उड़ गया मेरा अभिमन्यु
निगल गया मेरे अर्जुन का गांडीव
हवाओं में गोलोयों कि फुहार
मर रहा है बिसेसर
मर रही है रधिया आज
उजड़ रहा है रोज परिवार
खामोस हैं सब,देश,संसद
मेरी निजता नहीं है ना ताज
(मुंबई के होटल ताज पे आतंकी हमला हुवा था पूरा देश प्रसासन
संसद क्रियाशील हो गए थे आतंकी चाहे बाहर का हो या अंदर का, है तो आतंकी, जिसे देशद्रोही ही माना जाता है मुबई चूँकि संपन्न है होटल ताज एक संपन्न व्यक्तित्व कि धरोहर है क्या इसीलिए तुरंत कार्यवाही की गई
आज बस्तर कई साल से आतंक से पीड़ित है क्यों  कोई सार्थक पहल अभी तक नहीं हो सकी क्यों क्यों गरीब की मौत मौत नहीं है .....)

8 टिप्‍पणियां:

  1. गहन प्रस्तुति.....................
    बस्तर जैसे प्यारे संभाग की दुर्दशा पर वाकई दिल दुखता है.....

    सादर.

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  2. बिलकुल सही और सटीक अभिव्यक्ति.

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  3. आपके मन का आक्रोश शब्दों में उतर आया है ...
    व्यथा लिखी है आपने .. एक कडुवा सच ..

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  4. बहुत ही प्रभावित करती पक्तियां । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  5. विस्फोंटो में उड़ गया मेरा अभिमन्यु
    निगल गया मेरे अर्जुन का गांडीव
    हवाओं में गोलोयों कि फुहार
    मर रहा है बिसेसर
    मर रही है रधिया आज

    कविता का यह अंश बहुत मार्मिक है।
    संचचाई को शब्द दिए हैं आपने।

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  6. आते जाते सैलानियों के कैमरों में
    समा जाता हूँ बन के ‘कला”.... . सुंदर...

    विस्फोंटो में उड़ गया मेरा अभिमन्यु
    निगल गया मेरे अर्जुन का गांडीव
    हवाओं में गोलोयों कि फुहार...

    संवेदनशील रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें...

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